अक्षय तृतीया - Akshaya Tritiya !
अक्षय तृतीया पर माँ लक्ष्मी का पूजन
किया जाता है।
अक्षय तृतीया हिन्दुओं और जैन धर्मावलम्बियों का अत्यंत पवित्र दिन होता है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को यह पवित्र दिन आता है जो प्रतिवर्ष अप्रैल अथवा मई के महीने में पड़ता है। इस दिन को भगवान परशुराम का जन्म भी हुआ था, अतः इसे परशुराम जयंती भी कहा जाता है। भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। यह भी माना जाता है कि महाभारत महाकाव्य को लिपिबद्ध करने का कार्य भगवान गणेश द्वारा इसी दिन प्रारम्भ किया गया था। इस महाकाव्य की रचना वेद व्यास द्वारा की गयी थी और उन्होंने इसी दिन भगवान् गणेश को इसे सुनाना प्रारम्भ किया था।
जैन धर्मावलम्बियों की मान्यता है कि उनके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी द्वारा एक वर्ष की कठिन तपस्या पूरी करने के बाद इसी दिन गन्ने का रस करपात्र (दोनों हथेलियों को जोड़कर बनाये गए पात्र) में लेकर पिया गया था। इसे वर्षी-तप के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया को जैन व्रत - उपवास रखते हैं और तीर्थों में जाते हैं। विशेष कर गुजरात के पालीताना में जहाँ भगवान ऋषभदेव ने तप किया था।
उड़ीशा के जगन्नाथपुरी में रथ-यात्रा के लिए रथ के निर्माण का कार्य इसी दिन प्रारम्भ किया जाता है। अक्षय -तृतीया के दिन शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जाता है। विवाह, सोने की खरीददारी, जमीन की खरीददारी या किसी प्रकार का इन्वेस्टमेंट के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।हिन्दू किसी शुभ कार्य को करने के लिए शुभ तिथि हेतु पञ्चाङ्ग देखते हैं, परन्तु अक्षय तृतीया का दिन इतना शुभ होता है कि इसके लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती।
वैसे तो भगवान विष्णु के पूजन में अक्षत अर्पित नहीं किया जाता, किन्तु अक्षय तृतीया ही ऐसा दिन होता है जब विष्णु को अक्षत चढ़ा सकते हैं तथा शिव को तुलसी।
अक्षय तृतीया के पावन दिन ही प्रतिवर्ष भगवान बद्रीनाथधाम के कपाट भक्तों के दर्शन हेतु खुलते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन श्रीबांके बिहारी जी
के चरण - कमलों के दर्शन।
श्रीवृन्दावनधाम में बांके बिहारी जी का प्रसिद्ध मंदिर है जहाँ दर्शन कर अनेक भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुई हैं। किन्तु बिहारी जी के चरणों के दर्शन नहीं हो पाते क्योंकि वे वस्त्रों से ढँके होते हैं। उनके चरणों के दर्शन पूरे वर्ष में मात्र अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए सुलभ होते हैं। पायलों से सजे ठाकुर जी के चरण कमलों के दर्शन हेतु भक्तों का जन सैलाब उमड़ पड़ता है ताकि उनकी विशेष कृपा प्राप्त हो सके।
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही राजा भगीरथ की तपस्या से माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारम्भ भी अक्षय तृतीया से ही माना जाता है।
अक्षय का अर्थ होता है -जिसका क्षय न हो अर्थात जो घटे नहीं, जो सदा बना रहे। माह के पक्ष की तीसरी तिथि को तृतीया कहते हैं। अर्थात वह तृतीया जिसमें किया गया कार्य अक्षय रहे। इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी घटता नहीं। चूँकि गृहस्थों की आशा धन-संग्रह की होती है अतः इस दिन वे विशेषकर माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं और सोने - चाँदी की ख़रीददारी करते हैं। बदलते समय में आज का दिन बाज़ार के लिए भी बहुत बड़ा दिन हो गया है, इसमे मीडिया एवं ज्योतिषियों का बहुत योगदान है।
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