चित्रगुप्त महात्मय (Chitragupta Mahatmya)
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही
विधि का विधान है. विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और
मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा. चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों,
बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है.
मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है
जिसे कोई नहीं सुलझा सकता. लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा
और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक
है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे
है.
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी Šৠपर विष्णु लोक,
ब्रह्मलोक और शिवलोक है. जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के
अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है. जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और
शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से
मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा
परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें
यमलोक जाना पड़ता है. मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक
से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है
परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं.
इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा
कर देते हैं. इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है.
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है. कर्मों
का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त. यही भगवान चित्रगुप्त जन्म
से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते
हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके
कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क
में भेज देते हैं.
भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और
यमराज के सहयोगी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के
उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो
उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति
ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये
ब्रह्मा कहलाये. इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व,
अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी
जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें
जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य
सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार
वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ. इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी
की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.
चित्रगुप्त पूजा विधि (Chitragupta Pooja Vidhi)
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है.
ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय
मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का
विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा
उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम,
सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा
करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज
औ
र चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है. इस संदर्भ में एक कथा का यहां उल्लेखनीय है.
र चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है. इस संदर्भ में एक कथा का यहां उल्लेखनीय है.
चित्रगुप्त पूजा व्रत कथा (Chitragupta Pooja Vrat katha)
सराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सदास था. राजा अधर्मी और पाप कर्म
करने वाला था. इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था. एक बार शिकार
खेलते समय जंगल में भटक गया. वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे
थे. राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी
पूजा कर रहे हैं. ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं
यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं. इनकी पूजा नरक से मुक्ति
प्रदान करने वाली है. राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और
यमराज की पूजा की.
काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये. दूत राजा की
आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये. लहुलुहान राजा यमराज के
दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और
कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए
हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन
किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा
सकता. इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी.
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